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Showing posts from March 21, 2021

संसार की परछाई

🏵️🌾🌹 परछाई, एक बोध कथा एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया। जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे।लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी,नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं। राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान कहां मिलेगा? सिपाही प्रजा, कोतवाल-सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी

चार मित्र

किसी गाँव में चार मित्र रहते थे। चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते, योजनाएँ बनाते। एक ब्राह्मण एक ठाकुर एक बनिया और एक नाई था पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था। गजब की एकता थी। इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने चने आलू आदि चीजें उखाड़ कर खाते थे। एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे। खेत का मालिक किसान आया, चारों की दावत देखी, उसे बहुत क्रोध आया। उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे, पर चार के आगे एक, वो स्वयं पिट जाता। सो उसने एक युक्ति सोची। चारों के पास गया, ब्राह्मण के पाँव छुए, ठाकुर साहब की जयकार की बनिया महाजन से राम जुहार और फिर नाई से बोला--देख भाई ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं, ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं, महाजन सबको उधारी दिया करते हैं ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू? तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े? इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये। बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया क्योंकि उनकी तो प्र

ईमानदारी

मेरे साथ मेरा क्या जाएगा एक विद्वान साधु थे जो दुनियादारी से दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी, सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे।        एक बार वह पानी के जहाज से लंबी यात्रा पर निकले। उन्होंने यात्रा में खर्च के लिए पर्याप्त धन तथा एक हीरा संभाल के रख लिया ।         ये हीरा किसी राजा ने उन्हें उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर भेंट किया था सो वे उसे अपने पास न रखकर किसी अन्य  राजा को देने जाने के लिए ही ये यात्रा कर रहे थे।         यात्रा के दौरान साधु की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वे उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए। एक फ़क़ीर यात्री ने उन्हें नीचा दिखाने की मंशा से नजदीकियां बढ़ ली।          एक दिन बातों-बातों में साधु ने उसे विश्वासपात्र अल्लाह का बन्दा समझकर हीरे की झलक भी दिखा दी। उस फ़क़ीर को और लालच आ गया।           उसने उस हीरे को हथियाने की योजना बनाई। रात को जब साधु सो गया तो उसने उसके झोले तथा उसके वस्त्रों में हीरा ढूंढा पर उसे नही मिला।        अगले दिन उसने दोपहर की भोजन के समय साधु से कहा कि इतना कीमती हीरा है,आपने संभाल के रक्खा है न।         साधु ने अपने झोले से निकलकर दिखाया कि

लालच लोभ

*"लालच का फल"*         👇👇👇👇 किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह लालची स्वभाव का था, हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे। एक बार वह गांव से दूर जंगल के पास पहाड़ी पर अपनी बकरियों को चराने ले गया। अच्छी घास ढूँढने के चक्कर में आज वो एक नए रास्ते पर निकल पड़ा। अभी वह कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि तभी अचानक तेज बारिश होने लगी और तूफानी हवाएं चलने लगीं। तूफान से बचने के लिए गड़रिया कोई सुरक्षित स्थान ढूँढने लगा। उसे कुछ ऊँचाई पर एक गुफा दिखाई दी। गड़रिया बकरियों को वहीँ बाँध उस जगह का जायजा लेने पहुंचा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। वहां बहुत सारी जंगली भेड़ें मौजूद थीं। मोटी- तगड़ी भेड़ों को देखकर गड़रिये को लालच आ गया। उसने सोचा कि अगर ये भेड़ें मेरी हो जाएं तो मैं गांव में सबसे अमीर हो जाऊंगा। इतनी अच्छी और इतनी ज्यादा भेड़ें तो आस-पास के कई गाँवों में किसी के पास नहीं हैं। उसने मन ही मन सोचा कि मौका अच्छा है मैं कुछ ही देर में इन्हें बहला-फुसलाकर अपना बना लूंगा। फिर इन्हें साथ लेकर गांव चल