जा घट चिंता नागिनी
🙏🙏🌹🌹🙏🙏 चिंता का अर्थ क्या है? चिंता का अर्थ ही यह है कि बोझ मुझ पर है। पूरा कर पाऊंगा या नहीं। तुम साक्षी हो जाओ। कृष्ण ने गीता में यही बात अर्जुन से कही है कि तू कर्ता मत हो। तू निमित्त-मात्र है; वही करने वाला है। जिसे उसे मारना है, मार लेगा। जिसे नहीं मारना है, नहीं मारेगा। तू बीच में मत आ। तू साक्षी भाव से जो आज्ञा दे, उसे पूरी कर दे। परमात्मा कर्ता है-- और हम साक्षी। फिर अहंकार विदा हो गया। न हार अपनी है, न जीत अपनी है। हारे तो वह, जीते तो वह। न पुण्य अपना है, न पाप अपना है। पुण्य भी उसका, पाप भी उसका। सब उस पर छोड़ दिया। निर्भार हो गए। यह निर्भार दशा संन्यास की दशा है। ‘जा घट चिंता नागिनी, ता मुख जप नहिं होय।’ और जब तक चिंता है, तब तक जप नहीं होगा। तब तक कैसे करोगे ध्यान? कैसे करोगे हरि-स्मरण? चिंता बीच-बीच में आ जाएगी। तुम किसी तरह हरि की तरफ मन ले जाओगे, चिंता खींच-खींच संसार में ले आएगी। तुमने देखा होगा कि जब कोई चिंता तुम्हारे मन में होती है, तब बिल्कुल प्रार्थना नहीं कर पाते। बैठते हो, ओठ से राम-राम जपते हो और भीतर चि