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Showing posts from March 7, 2021

अहंकार

.    ⭕️'कहानी - एक कौवा और गरुड़'⭕️ ___________________________________ एक बार एक कौआ,मांस के एक टुकड़े को पकड़कर बैठने और खाने के लिए उड़ रहा था। हालाँकि, गिद्धों का एक झुंड उसका पीछा कर रहा था। कौवा चिन्तित था और ऊँची और ऊँची उड़ान भर रहा था, फिर भी गिद्ध गरीब कौवे के पीछे थी। तभी "गरुड़" ने कौवे की आंखों में दुर्दशा और पीड़ा देखी।  कौवे के करीब आकर उसने पूछा: "क्या बात है? आप बहुत" परेशान "और" तनाव "में हैं?" .. कौवा रोया "इन गिद्धों को देखो !! वे मुझे मारने के लिए मेरे पीछे हैं"। गरुड़ ज्ञान का पक्षी होने के कारण बोला "ओह माई फ्रेंड !! वे तुम्हें मारने के लिए तुम्हारे पीछे नहीं हैं !! वे मांस के उस टुकड़े के पीछे हैं जिसे आप अपनी चोंच में पकड़े हुए हैं"। बस इसे गिराएं और देखें कि क्या होगा। कौवा ने गरुड़ के निर्देशों का पालन किया और मांस का टुकड़ा गिरा दिया।टुकड़ा गिराते ही सभी गिद्धों गिरते हुए मांस की ओर उड़ गए। गरुड़ ने मुस्कुराते हुए कहा "दर्द केवल तब तक है जब तक आप इसे पकड़ते हैं" जस्ट ड्राप "। कौ

परमात्मा की खोज

*द्रढ निश्चय* एक सूफी फकीर हसन एक गाव में आया। रात आधी हो गई थी, कहीं ठहरने को कोई जगह नहीं; अजनबी, अपरिचित आदमी है। कहां किससे मदद मांगे। एक सराय के मालिक ने कहा कि कोई गवाह ले आओ, तब ठहरने दूंगा। आधी रात, गवाह कहां खोजे? अनजान, अपरिचित गांव है। कोई पहचान वाला भी नहीं है। परेशान हो गया सूफी फकीर। एक झाड़ के नीचे सोने को जा रहा था कि तभी एक आदमी उसके पास से गुजरता हुआ दिखाई पड़ा। फकीर ने उस आदमी से कहा कि पूरी बस्ती सो गई है, किसी को जानता नहीं हूं। क्या आप मेरे लिए थोड़ी सहायता करेंगे कि चलकर सराय के मालिक को कह दें कि आप मुझे जानते हैं! उस आदमी ने पास आकर हसन को देखा यह जानकर कि वह फकीर है—उसने हसन को कहा कि पहले तो मैं तुम्हें अपना परिचय दे दूं क्योंकि मैं एक चोर हूं और रात में अपने काम पर निकला हूं। एक चोर की गवाही एक साधु के काम पड़ेगी या नहीं, मैं नहीं जानता! सराय का मालिक मेरी बात माने, न माने।  मेरी गवाही का बहुत मूल्य नहीं हो सकता। लेकिन मैं एक निवेदन करता हूं कि मेरा घर खाली है। मैं तो रातभर काम में लगा रहूंगा, तुम आकर सो सकते हो। हसन थोड़ा चिंतित हुआ। और उसने कहा कि तुम एक चोर ह
*गाली देकर कर्म काट रही है* 🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔸 एक राजा बड़ा धर्मात्मा, न्यायकारी और परमेश्वर का भक्त था। उसने ठाकुरजी का मंदिर बनवाया और एक ब्राह्मण को उसका पुजारी नियुक्त किया। वह ब्राह्मण बड़ा सदाचारी, धर्मात्मा और संतोषी था। वह राजा से कभी कोई याचना नहीं करता था, राजा भी उसके स्वभाव पर बहुत प्रसन्न था। राजा के मंदिर में पूजा करते हुए उसे बीस वर्ष गुजर गये। उसने कभी भी राजा से किसी प्रकार का कोई प्रश्न नहीं किया। राजा के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ। राजा ने उसे पढ़ा लिखाकर विद्वान बनाया और बड़ा होने पर उसकी शादी एक सुंदर राजकन्या के साथ करा दी। शादी करके जिस दिन राजकन्या को अपने राजमहल में लाये उस रात्रि में राजकुमारी को नींद न आयी। वह इधर-उधर घूमने लगी जब अपने पति के पलंग के पास आयी तो क्या देखती है कि हीरे जवाहरात जड़ित मूठेवाली एक तलवार पड़ी है। जब उस राजकन्या ने देखने के लिए वह तलवार म्यान में से बाहर निकाली, तब तीक्ष्ण धारवाली और बिजली के समान प्रकाशवाली तलवार देखकर वह डर गयी व डर के मारे उसके हाथ से तलवार गिर पड़ी और राजकुमार की गर्दन पर जा लगी। राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया। राजकन्या

बंगाल के नवाब

मुगल काल में बंगाल को  विद्रोहों का नगर  कहा जाता था। मुगल काल में बंगाल  अफीम, सोरा, वस्त्र, चावल  आदि के निर्यात के लिए प्रसिद्ध था। मुगल काल में बंगाल सर्वाधिक संपन्न राज्य था।  बंगाल का पहला नवाब  मुर्शिद कुली खां था। बंगाल का अंतिम नवाब  मुबारिक उद् दौला था।   मीरजाफर को  क्लाइव का गधा  कहा जाता था। मुर्शिद कुली खां दक्षिण भारत का ब्राह्मण था जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। मुर्शिद कुली खां का एक अन्य नाम था, मुहम्मद हादी। यह भू राजस्व विशेषज्ञ था। दक्षिण में इसने औरंगजेब की सहायता की थी।  इसे  औरंगजेब ने 1700 में इसे  बंगाल का दीवान बनाकर ढाका में नियुक्त किया। इसके  द्वारा  नासिरी वंश  की स्थापना की गई थी।  1717 में  फारूखशियर  ने इसे बंगाल का सूबेदार बना दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद इसने स्वयं को  स्वतंत्र  घोषित कर लिया और  बंगाल का पहला स्वतंत्र शासक  बना। यद्यपि मुगल बादशाह को नियमित रूप से नजराना भेजता रहा। मुर्शिदकुली खां के कार्य राजधानी  ढाका से मुर्शिदाबाद  बनाई। राजस्व में सुधार  किया। खालसा भूमि  का विस्तार। ईजारेदारी प्रथा/ठेकेदारी प्रथा  की शुरुआत  की जिससे टैक

*ये मिट्टी किसी को नही छोडेगी:-*

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ये मिट्टी, किसी को नही छोडेगी   एक राजा बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था और उसे महल बनाने की बड़ी महत्त्वाकांक्षा रहती थी उसने अनेक महलों का निर्माण करवाया! रानी उनकी इस इच्छा से बड़ी व्यथित रहती थी की पता नही क्या करेंगे इतने महल बनवाकर! एक दिन राजा नदी के उस पार एक महात्मा जी के आश्रम के वहाँ से गुजर रहे थे तो वहाँ एक संत की समाधी थी और सैनिकों से राजा को सूचना मिली की संत के पास कोई अनमोल खजाना था और उसकी सूचना उन्होंने किसी को न दी पर अंतिम समय मे उसकी जानकारी एक पत्थर पर खुदवाकर अपने साथ ज़मीन मे गढ़वा दिया और कहा की जिसे भी वो खजाना चाहिये उसे अपने स्वयं के हाथों से अकेले ही इस समाधी से चोरासी हाथ नीचे सूचना पड़ी है निकाल ले और अनमोल सूचना प्राप्त कर लेंवे और ध्यान रखे उसे बिना कुछ खाये पिये खोदना है और बिना किसी की सहायता के खोदना है अन्यथा सारी मेहनत व्यर्थ चली जायेगी ! राजा अगले दिन अकेले ही आया और अपने हाथों से खोदने लगा और बड़ी मेहनत के बाद उसे वो शिलालेख मिला और उन शब्दों को जब राजा ने पढ़ा तो उसके होश उड़ गये और सारी अकल ठिकाने आ गई! उस पर लिखा था हॆ राहगीर संसार के सबसे

सच्चा सन्यास

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 सच्चा सन्यास 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 प्यास से बेचैन होकर एक व्यक्ति भटक रहा था. कुछ देर बाद उसे गंगाजी दिखाई पड़ी. पानी पीने के लिए वह तेजी से नदी की ओर भागा, लेकिन नदी तट पर पहुंचने से पहले ही बेहोश होकर गिर गया। थोड़ी देर बाद वहां एक संन्यासी पहुंचे. उन्होंने उसके मुंह पर गंगाजल का छींटा मारा तो वह होश में आया. व्यक्ति ने महात्मा के चरण छू लिए और अपने प्राण बचाने के लिए धन्यवाद करने लगा। संन्यासी ने कहा- बचाने वाला तो भगवान है. मुझमें इतनी सामर्थ्य कहां ? शक्ति होती तो मेरे सामने बहुत से लोग मरे, मैं उन सभी को बचा लेता. मैं तो सिर्फ बचाने का माध्यम बन गया। इसके बाद संन्यासी चलने को हुए तो व्यक्ति ने कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगा. संन्यासी ने पूछा- तुम कहां तक चलोगे. व्यक्ति बोला- जहां तक आप जाएंगे। संन्यासी ने कहा मुझे तो खुद पता नहीं कि कहां जा रहा हूं और अगला ठिकाना कहां होगा. संन्यासी ने समझाया कि उसकी कोई मंजिल नहीं है लेकिन वह अड़ा रहा. दोनों चल पड़े। कुछ समय बाद व्यक्ति ने कहा- मन तो कहता है कि आपके साथ ही चलता रहूं लेकिन कुछ टंटा गले में अटका है. वह जान नहीं छोड़ता