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Showing posts from February 21, 2021

सबसे बड़ी‘आस'

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/-qWRcbIrm9Q 🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻 चार बुढिया थीं। उनमें इस बात को लेकर विवाद हो गया कि उनमें सबसे बडी कौन है ? बहस करते-करते जब वे थक गयीं तो उन्होंने तय किया कि पड़ोस में जो नयी बहू आयी है, उसके पास चल कर फैसला करवायें।        वह चारों बहू के पास गयीं। और कहा कि हमारा फैसला कर दो, कि हममें से सबसे कौन बडी है?  बहू ने कहा कि सबसे पहले आपलोग अपना-अपना परिचय दें।    तो पहली बुढिया ने कहा:  मैं भूख मैया हूं। क्या मैं हु सबसे बडी हूं न?     बहू ने कहा कि भूख में विकल्प है, ५६व्यंजन से भी भूख मिट सकती है और बासी रोटी से भी।    तब दूसरी बुढिया ने कहा:  मैं प्यास मैया हूं, मैं सबसे बड़ी हूं?      तो बहू ने कहा कि प्यास में भी विकल्प है, प्यास गंगाजल और मधुर- रस  से भी शान्त हो जाती है और वक्त पर तालाब का गन्दा पानी पीने से भी प्यास बुझ जाती है।      तीसरी बुढिया ने कहा: मैं नींद मैया हूं, मैं बडी हूं न?    बहू ने कहा कि नींद में भी विकल्प है। नींद सुकोमल-सेज पर आती है। किन्तु वक्त पड़े तो लोग कंकड़ - पत्थ

*🟣 विधि का विधान 🟣*

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/g-jmRifvImQ *🟣 विधि का विधान 🟣* भगवान श्री राम जी का विवाह और राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त देख कर ही किया गया था,  फिर भी ना वैवाहिक जीवन सफल हुआ  और ना ही राज्याभिषेक। जब मुनि वशिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया- सुनहु भरत भावी प्रबल           बिलखि कहेहूं मुनिनाथ लाभ-हानि जीवन-मरण           यश - अपयश  विधि  हाथ *👉🏿अर्थात:-*       जो विधि ने निर्धारित किया है।       वही होकर रहेगा। ना भगवान श्री राम जी के जीवन को बदला जा सका और ना ही भगवान श्री कृष्ण जी के। ना ही भगवान शिव, सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आह्वान करता है। रामकृष्ण परमहंस जी भी अपने कैंसर को ना टाल सके। ना रावण अपने जीवन को बदल पाया और ना ही कंस, जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियां थीं। मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह, रंग, परिवार, समाज, देश और स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है। इसलिए  सरल रहें,  सहज रहें,  मन, कर्म और वचन से सद्कर्म में

आत्मज्ञान

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/He8ZK5LXzCw *🌻राजा से मिला आत्मज्ञान*🌻  एक युवक ने एक दिन एक पहुंचे हुए संन्यासी से कहा, 'मेरा मन इस संसार में नहीं लगता।  मैं यह दुनिया छोड़ना चाहता हूं।  क्या करूं।'  संन्यासी ने युवक से कहा, 'ऐसा करो,  तुम कुछ दिनों के लिए राजा के पास चले जाओ और उनके साथ राजमहल में ही रहो।  वहां तुम्हें अवश्य एक दिन आत्मज्ञान मिल जाएगा।' युवक समझ नहीं सका कि राजा के पास भला आत्मज्ञान कैसे मिल सकता है। उसे ऊहापोह में पड़ा देख  संन्यासी ने कहा, 'जाओ, तो सही,  तुम्हारे पहुंचने से पहले ही  वहां तुम्हारे बारे में सूचना पहुंच जाएगी।'  युवक राजमहल जा पहुंचा।  चारों तरफ सुख-समृद्धि नजर आने के बावजूद  उसका मन वहां नहीं लगा।  लेकिन वह मन ममोसकर वहां रुका रहा।  एक दिन राजा उसे नदी में स्नान कराने ले गया। युवक ने अपना कुर्ता खोला और तट पर रख दिया। उसी समय राजमहल के पास से शोर मचा, 'आग लग गई, आग लग गई।' कुछ ही क्षणों में आग की लपटें आकाश छूने लगीं। युवक ने दौड़कर अपना कुर्ता उठा लिया, लेकिन राजा नि

सत्संग के लाभ

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(((( सत्संग से संस्कार )))) . एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसे कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे।  . एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था। किसी ने संतश्री से कहाः . बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।" . बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं। . बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोज एकदम समय पर पहुँच जाता है।  . चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है, घंटों बैठा रहता है।" . बाबाजी सोचने लगे, "बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा।  . रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !'' . बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः "कथा सुनाई पड़ती है ?" . उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?" . बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैं जो कहता हूँ, क्या वह

*खरी कमाई”*

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*“खरी कमाई”* 🙏🏻🚩🌹   👁❗👁   🌹🚩🙏🏻 एक बड़े सदाचारी और विद्वान ब्राह्मण थे| उनके घर में प्रायः रोटी-कपड़े की तंगी रहती थी| साधारण निर्वाहमात्र होता था|  वहाँ के राजा बड़े धर्मात्मा थे| ब्राह्मणी ने अपने पति से कई बार कहा कि आप एक बार राजा से मिल आओ, पर ब्राह्मण कहते हैं कि वहाँ जाने के लिए मेरा मन नहीं कहता| ब्राम्हणी कहती वहाँ जाकर आप कुछ मत मांगो, केवल एक बार जाकर आ जाओ| पत्नी ने ज्यादा कहा  तो स्त्री की प्रसन्नता के लिए  ब्राम्हण राजा के पास चले गये|  राजा ने उनको बड़े त्याग से रहने वाले गृहस्थ ब्राह्मण जानकर उनका बड़ा आदर-सत्कार किया और उनसे कहा कि आप एक दिन और पधारें|  अभी तो आप मर्जी से आये हैं,  एक दिन आप मेरे पर कृपा करके मेरी मर्जी से पधारें| ऐसा कहकर राजा ने उनकी पूजा करके आनंदपूर्वक उनको विदा कर दिया|  घर आने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि राजा ने क्या दिया? ब्राह्मण बोले-  कुछ ना दिया, कहा कि एक दिन आप फिर आओ|  ब्राह्मणी ने सोचा कि अब माल मिलेगा|  राजा ने निमन्त्रण दिया है,  इसलिए अब जरुर कुछ देंगे| एक दिन राजा रात्रि में अपना वेश बदलकर, गरीब आदमी के कपड़े पहनकर घूमने ल

जीवन मंत्र जीवन का आनंद लो

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/WwmMb2ehMDA 🔥🌺🔥🌺🔥🌺🔥🌺🔥 🤔 *जीवन में परेशानियां तो लगे ही रहेंगे* 😊 🔶एक व्यक्ति था. उसके पास नौकरी, घर-परिवार, रुपया-पैसा, रिश्तेदार और बच्चे सभी कुछ था।  कहने का सार यह है कि उस व्यक्ति के पास किसी चीज़ की कोई कमी नही थी।  लेकिन जब जीवन है तो कुछ परेशानियां भी जीवन में आती ही हैं, जिससे मनुष्य हर पल जूझता ही रहता है। सो उस व्यक्ति के जीवन में भी कुछ परेशानियां थी और वह किसी भी तरह अपनी परेशानियों से मुक्ति चाहता था, ताकि सुख-शांति से रह सके। 🔶 एक बार किसी ने उसे बताया की नगर सीमा पर कोई बहुत बड़े संत ठहरे हुए है, जिनके पास हर समस्या और प्रश्न का हल है। इतना सुनते ही वह व्यक्ति भागा-भागा संत की कुटिया में पहुँचा. वहाँ भीड़ बहुत होने के कारण उसकी बारी आते-आते रात हो गई। उसने संत से पूछा, बाबा, मेरे जीवन की परेशानियां कैसे ख़त्म होगी? मैं भी सुख-शांति से जीवन जीना चाहता हूँ। 🔷 संत ने कहा, ”इसका उत्तर मैं कल सुबह दूंगा।  तब तक तुम एक काम करो.  मेरे साथ जो ऊँटों का रखवाला है वो बीमार हो गया है। तुम

"रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम"

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करेंhttps://youtu.be/LBs_iEETz-k एक राजा की कोई संतान न थी। वह सदा इस बात की चिंता करता था कि उसके मरने के बाद, यह राज्य कौन संभालेगा? जब वह राजा बहुत बूढ़ा हो गया, तब वह अपने गुरूजी के दरवाजे पर पहुँचा, जो एक ऊँचे पर्वत के शिखर पर रहते थे। उसने गुरूजी के सामने अपनी चिंता रखी। गुरूजी ने कहा- महाराज! आप चिंता न करें। आप कुछ दिन यहीं रुकें। मैं व्यवस्था करता हूँ कि आप इस राज्य के होने वाले राजा को लेकर ही राजधानी लौटें। गुरूजी ने प्रधानमंत्री से मंत्रणा कर पूरे राज्य में सूचना भिजवा दी कि जो भी नवयुवक स्वयं को इस राज्य के राजपद के योग्य समझते हों, वे सात दिन के भीतर इस पर्वत के शिखर पर पहुँचें।  यहाँ उनकी योग्यता को परख कर, सुपात्र को राजा बनाया जाएगा और जो राजा न बन पाएँगे, उन्हें मृत्यु का ग्रास बनना पड़ेगा।  हालाँकि यह शर्त वास्तविक नहीं थी, केवल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को परखने के लिए ही ऐसा प्रचार किया जा रहा था। बहुत से युवक चले। उन्हें रास्ते में भिन्न भिन्न जगह, भिन्न भिन्न मंत्री, शिविर लगाए मिलते थे। वे उन्हें रोकते औ

महाभारत के 9 सूत्र

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यदि "महाभारत" पढ़ने का समय न हो तो कोई बात नहीं। आज हम आपको बताएंगे इसके नौ सार- सूत्र जो हमारे जीवन में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। पहली सीख कौरवों से 1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे। दूसरी सीख कर्ण से 2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अगर अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र  शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जाएंगे। तीसरी सीख अश्वत्थामा से 3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयं का नाश करते हुए सर्वनाश को आमंत्रित करे। चौथी सीख भीष्म पितामह से 4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े। पांचवीं सीख दुर्योधन से 5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है। छठी सीख धृतराष्ट्र से 6. अंध व्यक्ति - अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम से अंधे व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है। सातवीं सीख अर्जुन से यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है। आठ

सब बढ़िया है All Is Well

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इसे YouTube पर देखने सुनने के इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/SrANRctNoho अपना दुख दर्द छुपाने को  बस बचा एक ही जरिया है  जब पूछे कोई कैसे हो  हम कह देते हैं बढ़िया है  चेहरे पर मुस्कान लिए  वाणी में रहते रस घोले स्वप्न सरीखा यह जीवन  जो सरक रहा होले होले  अश्रु किन्हें हम दिखलाएं  किससे हम मन की बात कहें  बेहतर लगती पीड़ा अपनी अपने भीतर चुपचाप सहें कुछ पीड़ा सुन मुस्काएंगे कुछ नमक छिड़क कर जाएंगे  कुछ पाप पुण्य का लगा गणित  पापों का फल बतलाएंगे  किसकी जिह्वा हम पकड़ेंगे  किस किसके होठ सिलाएंगे  ऐसा बोला तो क्यों बोला  किस-किस से लड़ने जाएंगे  चुपचाप सुनेंगे तानों को  दिल अपना भी एक दरिया है  फिर पूछेगा हाल कोई  तो कह देंगे सब बढ़िया है। 🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒 इसे YouTube पर देखने सुनने के इस लिंक 👇 पर क्लिक करें  https://youtu.be/SrANRctNoho

आदमी की औकात

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इसे YouTube पर देखने सुनने के इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/rLaujN9lC8A    *आदमी की औकात !!!!* जाने कौन सी शोहरत पर, आदमी को नाज है! जो आखरी सफर के लिए भी, औरों का मोहताज है ! बस इतनी सी ही बात है यही आदमी की औकात है... इसे YouTube पर देखने सुनने के इस लिंक 👇 पर क्लिक करें  https://youtu.be/rLaujN9lC8A

एक चुप सौ सुख

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें 🙏 हरि शरणम् https://youtu.be/jEQ6ugOlc6Y *एक चुप सौ सुख* एक जमीदार था, एक उसकी घर वाली थी। घर मे दो जने ही थे। जमीदार खेत के काम काज देखता और उसकी पत्नी घर का काम करती थी। पति-पत्नी दोनों ही गरम स्वभाव के थे।  थोड़ी थोड़ी बात पर दोनों मे ठन जाती थी। कभी कभी तो घरवाली का बना बनाया खाना भी बेकार हो जाता था।  एक दिन घरवाली अपनी रिश्तेदारी मे गई। वहां उसे एक बुजुर्ग औरत मिली। बातों बातों मे जमींदार की घरवाली ने बुजुर्ग औरत को बताया कि मेरे घरवाले का मिजाज बहुत चिड़चिड़ा है। वे जब तब मेरे से लड़ते ही रहते हैं। कभी कभी इससे हमारी बनी बनाई रसोई बेकार चली जाती है।  बुजुर्ग महिला ने कहा यह कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा तो हर घर मे होता रहता है। मेरे पास इसकी एक अचूक दवा है। जब भी कभी तेरा घरवाला तेरे साथ लड़े, तब तुम उस दवा को अपने मुंह मे रख लेना, इस से तुम्हारा घरवाला अपने आप चुप हो जाएगा।  बुजुर्ग महिला अपने अन्दर गई, एक शीशी भर कर ले आई और उसे दे दी। जमीदार की घरवाली ने घर आ कर दवा की परीक्षा करनी शुरू कर दी। जब भी जमीदार उस से लड़ता

जो निपट अज्ञानी है, जिसके पास कोई उत्तर नहीं

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मैंने सुना है, एक सूफी फकीर के आश्रम में प्रविष्ट होने के लिये चार स्त्रियां पहुंचीं।  उनकी बड़ी जिद थी, बड़ा आग्रह था।  यद्यपि सूफी उन्हें टालता रहा, लेकिन एक सीमा आई कि टालना भी असंभव हो गया।  सूफी को दया आने लगी, क्योंकि वे द्वार पर भूखी और प्यासी बैठी ही रहीं–और उनकी प्रार्थना जारी रही कि उन्हें प्रवेश चाहिए। उनकी खोज प्रामाणिक मालूम हुई तो सूफी झुका। और उसने उन चारों की परीक्षा ली। उसने पहली स्त्री को बुलाया और उससे पूछा, “एक सवाल है। तुम्हारे जवाब पर निर्भर करेगा कि तुम आश्रम में प्रवेश पा सकोगी या नहीं। इसलिए बहुत सोच कर जवाब देना।’ सवाल सीधा-साफ था। उसने कहा कि एक नाव डूब गई है; उसमें तुम भी थीं और पचास थे। पचास पुरुष और तुम एक निर्जन द्वीप पर लग गये हो। तुम उन पचास पुरुषों से अपनी रक्षा कैसे करोगी? यह समस्या है। एक स्त्री और पचास पुरुष और निर्जन एकांत!  वह स्त्री कुंआरी थी। अभी उसका विवाह भी न हुआ था। अभी उसने पुरुष को जाना भी न था। वह घबड़ा गई। और उसने कहा, कि अगर ऐसा होगा तो मैं किनारे लगूंगी ही नहीं; मैं तैरती रहूंगी। मैं और समुद्र्र में गहरे चली जाऊंगी। मैं मर

ओशो की महात्मा गांधी से पहली मुलाकात....

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/xG3nMvcQxuM ओशो की महात्मा गांधी से पहली मुलाकात.... मैं अभी भी उस रेलगाड़ी को देख सकता हूं जिसमें गांधी सफर कर रहे थे। वे सदा तीसरे दर्जे, थर्ड क्‍लास में सफर करते थे। परंतु उनका यह थर्ड क्‍लास फ़र्स्ट क्‍लास, प्रथम श्रेणी से भी अधिक अच्‍छा था।  साठ सीटों के डिब्‍बे में वे, उनकी पत्‍नी और उनका सैक्रेटरी—केवल यह तीन लोग थे। सारा डिब्‍बा आरक्षित था। और वह कोई साधारण प्रथम श्रेणी का डिब्‍बा नहीं था क्‍योंकि ऐसा डिब्‍बा तो दुबारा मैंने कभी देखा ही नहीं। वह तो प्रथम श्रेणी का डिब्‍बा ही रहा होगा। और सिर्फ प्रथम श्रेणी का ही नहीं बल्‍कि विशेष प्रथम श्रेणी का, सिर्फ उस पर ‘’तृतीय श्रेणी’’ लिख दिया गया था और तृतीय श्रेणी बन गया था। और इस प्रकार महात्‍मा गांधी के सिद्धांत और उनके दर्शन की रक्षा हो गई थी। उस समय मैं केवल दस साल का था।  मेरी मां यानी मेरी नानी ने मुझे तीन रूपये देते हुए कहा कि स्‍टेशन बहुत दूर है और तुम भोजन के समय तक शायद वापस घर न पहुच सको और इन गाड़ियों का कोई भरोसा नहीं है।  बारह-तेरह घंटे देर

आठवां दिन तो बना ही नहीं

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               सुखी जीवन जीने का सही तरीका    एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला- गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए? संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ ! “मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा। ”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो !”  संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले। कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया।  वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी क

अद्भुत साहस ओशो

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इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/TJH7ciZNI1w एक पहाड़ पर एक मंदिर था। यह सोने का बना मंदिर था, महुमूल्य हीरे-ज्वाहरात और खजाने उस मंदिर के पास थे। वह शक्ति साधना का मंदिर था। जब इस मंदिर का वृद्ध पुजारी मरने को हुआ तो उसने खबर भिजवायी कि नए पुजारी को चुनना है। जो व्यक्ति सर्वाधिक शक्तिशाली होगा- उसकी नियुक्ति हो जाएगी।  पुजारी ने खबर करवायी, निश्चित तिथि पर, जो लोग अपने को शक्तिशाली समझते हों वे पहाड़ की चढ़ाई शुरू करें। जो व्यक्ति सबसे पहले चढ़ाई पर ऊपर पहुंच जाएगा, वही पुजारी हो जाएगा और तय हो जाएगा कि कौन सर्वाधिक शक्तिशाली है?  उस राज्य से दूर दूर तक  जहां-जहां तक खबर हो सकती, थी, फैल गई।  सैकड़ों लोगों के मन में उत्कंठा हुई।  उतना बड़ा मंदिर और स्वर्ण का मंदिर,  अरबों-खरबों की संपत्ति  का मंदिर।  भला उसका पुजारी कौन नहीं होना चाहेगा?  जितने भी शक्तिशाली युवा थे, जिनके मन में आकांक्षा थी, वे सारे लोग इकट्ठे हो गए।  कोई दो सौ जवान,  जो अपनी-अपनी तरह से  सब तरह के शक्तिशाली थे, निश्चित तिथि पर उस पहाड़ पर चढ़ने लगे। हर जवान ने एक बड़ा पत्थार अप

ईर्ष्या

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  *!!!---: ईर्ष्या और हमारा जीवन :---!!!* ========================== एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से कहा कि वे कल प्रवचन में अपने साथ एक थैली में कुछ आलू भरकर लाएं। साथ ही निर्देश भी दिया कि उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। अगले दिन किसी शिष्य ने चार आलू, किसी ने छह तो किसी ने आठ आलू लाए। प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफरत करते थे। अब महात्मा जी ने कहा कि अगले सात दिनों तक आप लोग ये आलू हमेशा अपने साथ रखें। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते क्या हैं।लेकिन सबने आदेश का पालन किया। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों को कष्ट होने लगा। जिनके पास ज्यादा आलू थे, वे बड़े कष्ट में थे। किसी तरह उन्होंने सात दिन बिताए और महात्मा के पास पहुंचे। महात्मा ने कहा, ‘अब अपनी-अपनी थैलियां निकाल कर रख दें।’ शिष्यों ने चैन की सांस ली। महात्मा जी ने विगत सात दिनों का अनुभव पूछा। शिष्यों ने अपने कष्टों का विवरण दिया। उन्होंने आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया।  सभी ने कहा कि अब बड़ा हल्का महसूस

पति की बीवी नहीं होती

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यह कहानी एक टीवी चैनल के संपादक की लिखी हुई है। वे लिखते हैं कि कुछ समय पहले की बात है जब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़े के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला। खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी। पर शाम को जब मैं दफ्तर से घर के लिए निकल रहा था तो सीढ़ी के पास प्रधान संपादक मिल गए। मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संपादक जी, पति की बीवी नहीं होती। Image has been taken from WebDuniya क्या “पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था प्रधान संपादक ने फिर कहा  “बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है। पति की तो पत्नी होती है। मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न ?  बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं।लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह।  कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही होते हैं, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है। तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं। खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने न

लालची आदमी

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*"लालची आदमी"* 🙏🏻   👁❗👁   🙏🏻   एक नगर में एक लोभी व्यक्ति रहता था. अपार धन-संपदा होने के बाद भी उसे हर समय और अधिक धन प्राप्ति की लालसा रहती थी. एक बार नगर में एक चमत्कारी संत का आगमन हुआ. लोभी व्यक्ति को जब उनके चमत्कारों के बारे में ज्ञात हुआ, तो वह दौड़ा-दौड़ा उनके पास गया और उन्हें अपने घर आमंत्रित कर उनकी अच्छी सेवा-सुश्रुषा की. सेवा से प्रसन्न होकर नगर से प्रस्थान करने के पूर्व संत ने उसे चार दीपक दिए. चारों दीपक देकर संत ने उसे बताया, “पुत्र! जब भी तुम्हें धन की आवश्यकता हो, तो पहला दीपक जला लेना और पूर्व दिशा में चलते जाना. जहाँ दीपक बुझ जाये, उस जगह की जमीन खोद लेना. वहाँ तुम्हें धन की प्राप्ति होगी. उसके उपरांत भी तुम्हें धन की आवश्यकता हो, तो दूसरा दीपक जला लेना और पश्चिम दिशा में तब तक चलते जाना, जब तक वह बुझ ना जाये. उस स्थान से जमीन में गड़ी अपार धन-संपदा तुम्हें प्राप्त होगा. धन की तुम्हारी आवश्यकता तब भी पूरी ना हो, तो तीसरा दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में चलते जाना. जहाँ दीपक बुझे, वहाँ की जमीन खोदकर वहाँ का धन प्राप्त कर लेना.  अंत में तुम्हारे पास एक दीपक और