प्रेम क्या है
एक बौद्ध कथा है,
एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजरता है।
उसे एक वेश्या ने देखा और
वह मोहित हो गई।
संन्यासी और वेश्या दो विपरीत छोर हैं
और विपरीत छोरों में बड़ा आकर्षण होता है।
वेश्या को साधारण सांसारिक व्यक्ति
बहुत आकर्षित नहीं करता;
क्योंकि वह तो उसके पैर दबाता रहता है,
सदा दरवाजे पर खड़ा रहता है
कि कब बुला ले।
वेश्या बड़ी सुंदर थी।
भिक्षु वहां से गुजर गया।
वह द्वार पर खड़ी रही।
भिक्षु ने आंख उठाकर भी न देखा
वह कहीं और लीन था,
किसी और ही दुनिया में था,
वेश्या भागी और भिक्षु को रोका
भिक्षु रुक गया,
लेकिन उसके चेहरे पर
कोई हवा का झोंका भी न आया,
आंख में कोई वासना की झलक न आई।
वह वैसे ही खड़ा रहा।
उस वेश्या ने कहा,
क्या मेरा निमंत्रण स्वीकार करोगे
एक रात मेरे घर रुक जाओ?
उस भिक्षु ने कहा,
आऊंगा जरूर आऊंगा
लेकिन तब, जब जरूरत होगी।
वेश्या कुछ समझी नहीं,
वह समझी कि शायद
भिक्षु को अभी जरूरत नहीं है।
लेकिन भिक्षु तो
कुछ और ही बात कह रहा था।
और ठीक ही है,
भिक्षु और वेश्या की भाषा
इतनी अलग
कि समझना मुश्किल।
वेश्या दुखी, पराजित महसूस कर रही थी।
क्योंकि यह पहला पुरुष था
जिसने उसका निमंत्रण ठुकराया था,
वह लौट गई।
लेकिन जीवन भर यह याद कसकती रही,
घाव की तरह पीड़ा बनी रही।
उम्र ढल गई।
कितनी देर लगती है उम्र के ढलने में?
सूरज जब उग आता है
तो डूबने में देर कितनी?
जवानी आ जाती है
तो कितनी देर रुकेगी?
जवानी तो बुढ़ापे का पहला चरण है।
जल्दी ही शरीर चुक गया;
वह स्त्री कोढ़ग्रस्त हो गई।
उसका सारा शरीर भयानक रोग से भर गया।
उसके शरीर से बदबू आने लगी।
जिन्होंने उसके द्वार पर नाक रगड़ी थी,
जो उसके द्वार पर खड़े प्रतीक्षा करते थे
उन्होंने ही उसे गांव के बाहर निकाल फेंक दिया। दुर्गंध से भरी स्त्री की कौन फिकर करता है?
सौंदर्य
भयानक कुरूपता में बदल गया।
जिस शरीर में स्वर्ण काया मालूम होती थी,
वह काया देखने योग्य न रही,
वीभत्स हो गई।
अमावस की रात; वह प्यासी गांव के बाहर मर रही थी।
वह पानी के लिए पुकारती है।
कि तभी किसी का हाथ
बढ़ता है अंधेरे में
और उसे पानी पिलाता है।
वह पूछती है,
तुम कौन हो?
उस भिक्षु ने कहा,
बीस साल पहले की बात है
मैं वही भिक्षु हूं।
मैंने कहा था,
जब जरूरत होगी
तब मैं आ जाऊंगा।
और मुझे पता था कि
यह जरूरत जल्दी ही आएगी।
क्योंकि
कितने दिन तक
शरीर को भोगा जा सकता है?
और कितने दिन तक
शरीर को बेचा जा सकता है?
आज तुझे जरूरत है,
मैं हाजिर हूं।
आज वेश्या को समझ में आया
कि जरूरत का मतलब क्या होता है।
भिक्षु की जरूरत न थी।
भिक्षु तो वही है
जिसको किसी चीज की जरूरत ही न हो
लेकिन इस क्षण में ही,
उस भिक्षु ने कहा,
अब तू पहचान सकेगी
कि तुझे कौन प्रेम करता है।
वे
जो तेरे द्वार पर इकट्ठे होते रहे थे
उनका तुझसे
कोई भी प्रयोजन न था;
वे अपने को ही
प्रेम करते थे।
तुझे भोगते थे पदार्थ की तरह, वस्तु की तरह।
उन्होंने तेरी आत्मा को
कभी कोई सम्मान न दिया था।
प्रेम तो तभी पैदा होता है
जब तुम किसी की आत्मा को
सम्मान देते हो।
लेकिन वैसा प्रेम
पैदा कैसे होगा?
तुमने अभी अपनी ही आत्मा को
सम्मान नहीं दिया
तो तुम दूसरे की आत्मा को पहचानोगे कैसे? सम्मान कैसे दोगे?
प्रेम तो इस जगत में कभी-कभी घटता है
जब दो आत्माएं
एक-दूसरे को पहचानती हैं।
यहां तो अपनी ही आत्मा को
पहचानना इतना दूभर है, इतना मुश्किल है,
कि शायद ही
दो आत्माएं एक-दूसरे को पहचान लें।
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