नाम सुमर मन बावरे
इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/lY_W38X2Y0Y
*मनुष्य जीवन का संघर्ष क्या है?
इस संघर्ष का लक्ष्य क्या है?*
मनुष्य जीवन का संघर्ष है मनुष्य होने के लिए।
मनुष्य
मनुष्य की तरह पैदा नहीं होता।
मनुष्य केवल
संभावना लेकर पैदा होता है।
जन्म के साथ
कोई मनुष्य नहीं होता।
कुत्ते जरूर कुत्ते होते हैं,
बिल्लियां बिल्लियां होती हैं।
कबूतर कबूतर होते हैं,
कौवे कौवे होते हैं।
मगर कोई मनुष्य
जन्म के साथ मनुष्य नहीं होता।
मनुष्यता अर्जित करनी होती है।
यही मनुष्य का भेद है।
इस सारी पृथ्वी पर यही मनुष्य की गरिमा है, गौरव है। और यही मनुष्य का संताप और पीड़ा भी।
तुम कुत्ते से यह नहीं कह सकते
कि तुम पूरे कुत्ते नहीं हो।
कहो, तुम्हीं को खुद भद्दा लगेगा
कि यह किस तरह की बात है।
सब कुत्ते पूरे कुत्ते हैं।
लेकिन तुम किसी आदमी से कह सकते हो
कि भाई, तुम पूरे आदमी नहीं हो।
और इसमें कुछ असंगति नहीं होगी,
कुछ गलती नहीं होगी।
अधिक लोगों के संबंध में यही सत्य है
कि वे पूरे आदमी नहीं हैं ।
कुत्ता तो पूरा का पूरा पैदा होता है।
तुमने देखा होगा?
मनुष्य का बच्चा
इस जगत् में
सबसे असहाय बच्चा है।
हिरन का बच्चा पैदा हुआ और चला अपने काम पर। गाय का बच्चा पैदा हुआ और खड़ा हुआ।
मनुष्य के बच्चे को अपने पैरों पर खड़े होने में 25 साल लगते हैं ।
पचहत्तर साल की उम्र में पच्चीस साल :
एक तिहाई अपने पैर पर खड़े होने में लग जाते हैं।
जब तक बेटा विश्वविद्यालय से न लौटे,
नौकरी न करे,
तब तक अपने पैर पर खड़ा नहीं होता।
पच्चीस साल पैर पर खड़े होने में लग जाते हैं।
मनुष्य का बच्चा सबसे ज्यादा असहाय है।
मनुष्य के बच्चे को छोड़ दो बिना मां—बाप के,
एक बच्चा नहीं बचेगा।
पशु—पक्षियों के बच्चे बच जाएंगे।
वे पूरे के पूरे पैदा होते हैं।
फिर कुछ और
अर्जित नहीं करना है।
आदमी के बच्चे को सब कुछ अर्जित करना है।
उसे सब सीखना है,
विकसित होना है,
निखरना है,
बनना है।
आदमी का जीवन एक सृजनात्मक प्रक्रिया है।
तभी तो
कोई कुत्ता
कुत्ते से ऊपर नहीं उठ पाता।
कुत्ते से नीचे भी नहीं गिरता,
खयाल रखना;
ऊपर भी नहीं उठता।
आदमी आदमी से नीचे भी गिर सकता है
और आदमी से ऊपर उठ जाए तो गौतम बुद्ध।
और आदमी आदमी भी हो जाए
तो भी बड़ी सुगंध पैदा होती है।
मनुष्य का संघर्ष है मनुष्य होने के लिए।
और जो मनुष्य हो जाता है
उसे पता चलता है
कि मैं परमात्मा हो सकता हूं।
मनुष्य के जन्म पर जन्म होते हैं।
सारे पशु एक बार जन्मते हैं,
मनुष्य दो बार जन्मता है।
इसलिए हमारे पास एक कीमती शब्द हैः
द्विज——दुबारा जन्मा।
ब्राह्मण को द्विज कहते हैं।
सभी ब्राह्मण द्विज होते नहीं, प्रतीक मात्र है। मेरे लेखे जो द्विज हो उसको ब्राह्मण कहना चाहिए। सभी ब्राह्मणों को द्विज नहीं कहना चाहिए। जो द्विज हो उसको ब्राह्मण कहना चाहिए, फिर चाहे वह चमार ही क्यों न हो।
द्विज का अर्थ है : जो दुबारा जन्मा।
एक तो जन्म हुआ मां—बाप से।
एक संभावना लेकर हम आए हैं
कि मनुष्य हो सकते हैं।
फिर मनुष्य हो गए,
फिर दूसरा जन्म होता है
स्वयं के भीतर,
स्वयं के अंतस्थल में,
स्वयं की अंतरात्मा में।
उस दूसरे जन्म से
कोई बुद्ध होता है,
महावीर होता है,
कृष्ण होता है।
वह दूसरा जन्म
मनुष्य को ब्राह्मण बनाता है।
क्यों ब्राह्मण बनाता है?
क्योंकि उस दूसरे जन्म से
व्यक्ति ब्रह्मा को अनुभव करता है
इसलिए ब्राह्मण हो जाता है।
सभी ब्राह्मण द्विज नहीं होते, लेकिन
सभी द्विज ब्राह्मण होते हैं।
मगर द्विज होना तो बड़ी दूर की बात है,
हम तो पहले जन्म को ही पूरा नहीं कर पाते।
हमारा पहला जन्म ही अधूरा रह जाता है।
हम आदमी ही नहीं हो पाते।
इसे YouTube पर देखने के लिए इस लिंक 👇 पर क्लिक करें https://youtu.be/lY_W38X2Y0Y
Comments
Post a Comment