समाधि-- ओशो
एकांत, मौन और ध्यान समाधि के उपाय हैं।
ये समाधि के तीन चरण हैं।
अपने को अकेला जानो।
अकेले आए हो,
अकेले जाओगे,
अकेले हो।
संग—साथ सब झूठ है।
संग—साथ सब खेल है।
संग—साथ सब मान्यता है, मानी हुई बात है।
कौन किसका है?
कोई किसी का नहीं है?
इस भाव को गहन कर लेने का नाम एकांत है।_
मैं अकेला हूं मैं अकेला हूं
ऐसा श्वास—श्वास में रम जाए।
मैं अकेला हूं —ऐसा हृदय की धड़कनों में बस जाए।
मैं अकेला हूं—यह बात इतनी प्रगाढ़ होकर बैठ जाए कि कभी भूले न,
क्षणभर को न भूले। यही संसार से मुक्ति है।
यह नहीं कि तुम किसी को छोड़कर जाओ।
यह जानना कि मैं अकेला हूं। पत्नी है, तो रहे। बेटे हैं, तो रहें। घर है, तो रहे। लेकिन मैं अकेला हूं। भरे घर में तुम अकेले हो जाओ। भरी भीड़ में तुम अकेले हो जाओ। यह सारा संसार चल रहा है और मैं अकेला हूं ।
यह एकांत की भाव— भंगिमा है।
और जब अकेला हूं
तो बोलना क्या है!
किससे बोलना है?
क्या बोलना है?
तो एक चुप्पी अपने आप उतरने लगेगी।
और जब चुप होने लगे, तो भीतर भी क्या सोचना?
आदमी को बोलना होता है, तो सोचता है।
बोलना तभी होता है,
जब सोचता है कि दूसरे हैं।
ये सब जुड़ी हैं बातें।
इन सबकी श्रृंखला है।
आदमी सोचता है, क्योंकि बोलना है।
बोलता है, क्योंकि दूसरों से जुड़ना है।
जब दूसरों से जुड़े ही नहीं हैं हम,
और जुड़ सकते ही नहीं हैं हम,
तो फिर बोलना क्या और सोचना क्या
और जब ये तीन बातें एकांत, मौन और ध्यान पूरी हो जाए
तों फिर जो शेष रह जाती है,
वहीं समाधि होती है
जब सम हो गए
तो शून्य प्रगट हुआ।
🌹 *ओशो*🌹
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