ऊंची उड़ान

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*"ज्ञान के पंख"*

बहुत समय पहले की बात है,
एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये, वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे, राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।

          कुछ समय पश्चात राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे, और अब पहले से भी शानदार लग रहे हैं, राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे, आदमी से कहा, मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ, तुम इन्हें उड़ने का इशारा करो,

आदमी ने ऐसा ही किया, इशारा मिलते ही 
दोनों बाज उड़ान भरने लगे। लेकिन कुछ समय जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था, वहीं दूसरा बाज कुछ ऊपर जाकर वापस एक डाल पर आकर बैठ गया। ये देख राजा को कुछ अजीब लगा, राजा ने सवाल किया,
क्या बात है, एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है तो दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा..?

सेवक बोला, हुजूर, इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है, वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं, 
राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे, और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ते हुए देखना चाहते थे।

अगले दिन राजा ने पूरे राज्य में ऐलान करा दिया, कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा, 

फिर क्या था, एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे, पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।
फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ, राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।
उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।

वह व्यक्ति एक किसान था, अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ, उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो  तुमने कैसे कर दिखाया,

तो किसान बोला मालिक..! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , 
मैंने तो बस वो डाल काट दी, जिस पर वह बाज बैठने का आदी हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा ।

दोस्तों, हम सभी ऊँची उड़ान भरने के लिए ही बने हैं, लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है, उसके इतने आदी हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की क्षमता को भूल जाते हैं, जन्म जन्म से हम भौतिक वासनाओं की डाल पर  बैठते आए हैं और अज्ञानवश ये भी हमें ज्ञात नहीं कि जो हम आज कर रहे हैं, वहीं हमने जन्मों जन्मों में किया है, और हम यह भूल ही गए हैं कि हम उड़ान भर सकते हैं, अतृप्त भौतिक वासनाओं की डाल पर बैठे बैठे हमें विस्मृति हो गयी है, कि ध्यानरूपी पंख भी हैं, हमारे पास जिससे हम उड़ान भर सकते हैं, 

पदार्थ से परमात्मा तक की, व्यर्थ से सार्थक की...
जो प्राप्त है-पर्याप्त है

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