तुम गलत हो -- ओशो

 अकबर के समय में एक धार्मिक व्यक्ति 

तीर्थयात्रा पर गया। 

उन दिनों 

बड़े खतरे के दिन थे। 

संपत्ति को पीछे छोड़ जाना 

और अकेला ही आदमी था, 

बच्चे—पत्नी भी नहीं थे, 

काफी संपदा थी। 

तीर्थयात्रा पर जाने से पहले वह अपने एक मित्र, जिस पर भरोसा था, के पास अपनी संपत्ति रख गया,  

और कहा 

कि अगर जीवित लौट आया, तो मुझे लौटा देना

अगर जीवित न लौटूं, 

तो इसका जो भी सदुपयोग बन सके 

कर लेना। 


पुराने दिनों में बहुत लोग तीर्थ से लौट भी नहीं पाते थे। 

वह लंबी मानसरोवर की यात्रा पर गया था। 

पर भाग्य से जीवित वापस लौट आया। 

मित्र ने तो मान ही लिया था 

कि वह लौटेगा नहीं। 

लेकिन जब वह लौट आया, 

तो अड़चन हुई। 

संपत्ति काफी थी 

और मित्र को वापस लौटाना मुश्किल लगा। 

मित्र पलट गया। 

उसने कहा कि तुम संपत्ति रख ही नहीं गए! 

कैसी बातें करते हो? 

तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया 

कोई गवाह भी नहीं था। 

बात अकबर की अदालत तक पहुंची। 

एक भी गवाह नहीं, 

उपाय भी नहीं कोई।  

यह आदमी कहता है, रख गया। 

और दूसरा आदमी कहता है, 

नहीं रख गया।

अब कैसे निर्णय हो? 

अकबर ने बीरबल से सलाह ली। 

बीरबल ने, उस आदमी से

जो रुपए रख गया था, 

उससे कहा कि 

कोई भी तो गवाह हो! 

उसने कहा, गवाह तो कोई भी नहीं है; 

सिर्फ जिस वृक्ष के नीचे बैठकर 

मैंने इसे संपत्ति दी थी, 

वह वृक्ष ही गवाह है। 

बीरबल ने कहा, 

तब काम चल जाएगा। 


तुम जाओ, 

वृक्ष को कहो कि

अदालत ने बुलाया है । 

उस आदमी को लगा कि 

यह तो पागलपन है,  भला वृक्ष कैसे आएगा।

लेकिन कोई और उपाय भी नहीं है। 

उसने सोचा, पता नहीं 

इसमें कुछ राज हो। 

उसने कहा, 

मैं जाता हूं प्रार्थना करूंगा। 

वह आदमी गया। 

दूसरा आदमी 

जिसके पास रुपए जमा थे, 

वह बैठा रहा। 

बड़ी देर हो गई। 

तो बीरबल ने कहा, 

बड़ी देर हो गई, 

वह आदमी लौटा क्यों नहीं! 

तो वहां बैठे दूसरे आदमी ने कहा 

कि जनाब, वह वृक्ष बहुत दूर है। 

तो बीरबल ने कहा, 

मामला हल हो गया। 

तुमने रुपए लिए हैं, 

अन्यथा तुम्हें 

उस वृक्ष का पता कैसे चला 

कि वह कितने दूर है!

ऐसे ही

हमारे भीतर भी 

हमें पता चलने के लिए कुछ संकेत चाहिए, परोक्ष। 

प्रत्यक्ष तो कोई उपाय नहीं है। 

प्रत्यक्ष तो आप जैसे हैं, 

उससे भिन्न होने का कोई उपाय नहीं है। 

परोक्ष कोई उपाय चाहिए। 

प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि में 

आपको परोक्ष झलकें 

मिलना शुरू होंगी 

और लगेगा 

कि आप गलत हैं। 

क्योंकि जैसे ही 

आपको लगेगा 

कि प्रज्ञावान पुरुष सही है, 

वैसे ही आपको लगेगा कि मैं गलत हूं |

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