आत्मा और परमात्मा

 ईश्वर और आत्मा क्या है? 

क्या आत्मा ही परमात्मा है?

मैं कोई उत्तर दूं 

तो गलत होगा। 

क्योंकि मैंने कहा 

कि आत्मा और परमात्मा के संबंध में 

बाहर से कोई कुछ भी नहीं दे सकता। 

अगर मैं खुद ही कोई उत्तर दूं 

तो मैं अपनी ही बात की 

गलती में चला जाऊंगा।

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मैं आपको नहीं कहता 

कि आत्मा क्या है 

और परमात्मा क्या है, 

मैं आपको इतना ही कहता हूं 

कि कैसे उन्हें जाना जा सकता है।

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आत्मा क्या है, 

यह कहना 

बिलकुल संभव नहीं है। 

आज तक संभव हुआ नहीं‌ है।

किसी व्यक्ति ने 

इस जगत में 

यह नहीं कहा 

कि आत्मा क्या है।

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जो उस सत्य के प्रति जागे हैं  

उन्होंने यही बताया 

कि हम कैसे जागे हैं; 

मैं आपको नहीं कहूंगा कि आत्मा क्या है। 

मैं तो यही कहूंगा 

कि जो कुछ अभी अज्ञात है 

वह ज्ञात हो सकता है। 

ज्ञात होने की विधि 

यह है 

कि उसके संबंध में कोई विचार परिपक्व न करें, 

समस्त विचार छोड़कर 

शून्य हो जाएं 

और साक्षी बन जाएं।

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मैं भी 

एक विचार आपको दे दूं, 

तो उससे कोई अर्थ न होगा। 

एक और विचार 

आपके मस्तिष्क में बैठ जाएगा। 

मैं तो कह रहा हूं, 

समस्त विचार छोड़ दें। 

आत्मा के संबंध में 

सब विचार छोड़ दें, 

मौन हो जाएं

आपको दिखेगा 

क्या है 

और उसी में 

आपको यह भी दिखेगा 

कि वही आत्मा समस्त में व्याप्त है या नहीं

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वही आत्मा 

अगर समस्त में 

व्याप्त दिखाई पड़े, 

तो अर्थ हुआ, 

परमात्मा है।

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जो एक के भीतर व्याप्त है, 

अगर वही चैतन्य, वैसा ही चैतन्य 

समग्र के भीतर व्याप्त है, 

तो उस समग्र चेतना का नाम 

परमात्मा है। 

समस्त के भीतर 

जो व्याप्त चैतन्य है, 

उसका नाम परमात्मा है।

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समस्त के भीतर  

व्याप्त जो जड़ है, 

उसका नाम प्रकृति है। 

और प्रत्येक व्यक्ति 

जड़ और प्रकृति, 

परमात्मा और प्रकृति का जोड़ है। 

प्रत्येक के भीतर शरीर है 

प्रत्येक के भीतर 

अशरीरी चैतन्य है।

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मेरे लिए रास्ता है 

कि मैं शरीर के पार 

जो अशरीर चैतन्य है 

उसको अनुभव कर लूं। 

उसका अनुभव 

मुझे जगत-सत्य का अनुभव करा देगा।

मैं कुछ भी नहीं कहूंगा 

कि परमात्मा है या नहीं, या

आत्मा कैसा है। 

मैं इतना ही कहूंगा 

कि जो भी है 

उसे जानने का उपाय है। 

उपाय बताया जा सकता है, 

उसे जानने की विधि 

बतलाई जा सकती है। 

अंधे को 

प्रकाश नहीं बताया जा सकता, 

आंख सुधारने का 

उपाय बताया जा सकता है। 

अंधे को प्रकाश के संबंध में 

कोई सिद्धांत समझाया नहीं जा सकता।

लेकिन आंख के उपचार की 

व्यवस्था बताई जा सकती है। 

आंख सुधर जाए, तो

प्रकाश दिखेगा। 

प्रकाश को देखना पड़ेगा

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हमारे भीतर अंतःप्रज्ञा जाग्रत हो सकती है, 

उससे जो दर्शन होगा 

वह जगत-सत्य के संबंध में 

कुछ हमको दिखा देगा। 

उससे पूर्व 

कोई दूसरा 

उसे दिखाने में 

न समर्थ है...और 

न दावा कर सकता है।

अगर कोई दावा करता हो, 

तो दावा गलत है।

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हम कहीं हों, 

मार्ग हो सकता है, 

क्योंकि आत्मा 

प्रतिक्षण मौजूद है, मेरे भीतर। 

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मैं बाहर घूम रहा हूं 

और भीतर जाने का मार्ग 

नहीं पाता हूं। 

निरंतर यह सुनने पर 

कि भीतर जाना है 

मेरा सारा घूमना 

बाहर ही होता है 

और भीतर जाना नहीं हो पाता। 

असल में 

इतना समझ लेना है 

कि बाहर 

मैं किन वजहों से घूम रहा हूं, 

कौन से कारण मुझे बाहर घुमा रहे हैं? 

अगर वे कारण छुट जाए 

तो मैं भीतर पहुंच जाऊंगा, और

आत्मा और परमात्मा के साथ साक्षात्कार हो सकेगा।

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https://youtu.be/cjfxfsn9G-o 

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