बंगाल के नवाब

मुगल काल में बंगाल को विद्रोहों का नगर कहा जाता था। मुगल काल में बंगाल अफीम, सोरा, वस्त्र, चावल आदि के निर्यात के लिए प्रसिद्ध था। मुगल काल में बंगाल सर्वाधिक संपन्न राज्य था। 
बंगाल का पहला नवाब मुर्शिद कुली खां था।
बंगाल का अंतिम नवाब मुबारिक उद् दौला था। 
मीरजाफर को क्लाइव का गधा कहा जाता था।


मुर्शिद कुली खां दक्षिण भारत का ब्राह्मण था जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। मुर्शिद कुली खां का एक अन्य नाम था, मुहम्मद हादी। यह भू राजस्व विशेषज्ञ था। दक्षिण में इसने औरंगजेब की सहायता की थी। इसे औरंगजेब ने 1700 में इसे बंगाल का दीवान बनाकर ढाका में नियुक्त किया। इसके द्वारा नासिरी वंश की स्थापना की गई थी। 
1717 में फारूखशियर ने इसे बंगाल का सूबेदार बना दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद इसने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया और बंगाल का पहला स्वतंत्र शासक बना। यद्यपि मुगल बादशाह को नियमित रूप से नजराना भेजता रहा।

मुर्शिदकुली खां के कार्य

राजधानी ढाका से मुर्शिदाबाद बनाई।
राजस्व में सुधार किया।
खालसा भूमि का विस्तार।
ईजारेदारी प्रथा/ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत 
की जिससे टैक्स में वृद्धि, व्यापारी शाहूकारी हित कमजोर हुआ। 
किसानों को तकावी ऋण दिया। 
इसके समय में तीन बार जमींदारों का विद्रोह हुआ।
1719 में इसने उड़ीसा का विलय कर अपने दामाद शुजाउद्दीन को वहां का सूबेदार बना दिया।

मुर्शिद कुली खां ने शुजाउद्दीन को बंगाल का अगला नवाब नियुक्त किया।

शुजाउद्दीन 

मुर्शिदकुली खां का दामाद था और बंगाल का अगला नवाब बना। इसके समय में बिहार बंगाल का हिस्सा बना और अलीवर्दी खां को बिहार का नवाब बनाया।
शुजाउद्दीन ने एक सलाहकार परिषद बनाई और इसी के सहारे शासन चलाता था। इस सलाहकार परिषद में 
अलीवर्दी खां (बिहार का नवाब)
हाजी अहमद (धार्मिक मामले)
फतेहचंद्र (मूल नाम माधवराव) यह जगत सेठ के नाम से मशहूर था। 1744 में मुहम्मद शाह रंगीला ने इसे जगत सेठ की उपाधि दी थी। यह बंगाल का सबसे बड़ा शाहूकार था।
राज ए रायान
शुजाउद्दीन के बाद सरफराज खान बंगाल का अगला नवाब नियुक्त हुआ।

सरफराज खान 
उपाधि आलम उद्दौला हैदरजंग
यह शुजाउद्दीन का पुत्र और नासिरी वंश का आखिरी शासक था। बिहार के राजस्व को लेकर इसका अलीवर्दी खां से विवाद हो गया। परिणामस्वरूप
इन दोनों के बीच 1740 में गिरिया का युद्ध या राजमहल का युद्ध हुआ जिसमें अलीवर्दी खां की विजय हुई।
इसके बाद बंगाल में अलीवर्दी खां का शासन शुरू हुआ अलीवर्दी खां ने बंगाल में अफसार वंश या नजाफी वंश की स्थापना की।

अलीवर्दी खां
इसका मूल नाम मिर्जा मोहम्मद था। इस की उपाधि थी शुजाउद्दीन थी और यह वीणा वाद्य यंन्त्र का विशेषज्ञ था।
अपने शासन को वैध बनाने के लिए इसने मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला को 2 करोड़ का नजराना पेश किया। लेकिन इसने मुगल सम्राट को नियमित रूप से कर देना बंद कर दिया। 
मराठा सरदार रघु जी भोंसले को इसने 12 लाख वार्षिक और उड़ीसा की चौथ देना स्वीकार किया।
इसने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को अपनी किलेबंदी नहीं करने दी।
इसने यूरोपियों की तुलना मधुमक्खियों से की।
अलीवर्दी खां की केवल तीन लड़कियां थी, कोई लड़का न था।
तीन लड़कियां थी
मेहरनिशा बेगम या घसीटी बेगम (नि:संतान थी)
मुनीरा बेगम (इसका पुत्र था शौकत जंग)
अमीना बेगम (इसी का पुत्र था सिराजुद्दौला)
अलीवर्दी खां की मौत जलोदर (पेचिश) रोग से हुई।
इसने सिराजुद्दौला को बंगाल का अगला नवाब नियुक्त किया।

सिराजुद्दौला
अलीवर्दी खां की मौत के बाद सिराजुद्दौला गद्दी पर बैठा।
सिराजुद्दौला का अर्थ है राज्य का प्रकाश पुंज
यह बंगाल का अंतिम स्वतंत्र नवाब था।
सिराजुद्दौला के दरबार में उसी के विरुद्ध एक षड्यंत्रकारी गिरोह सक्रिय था, जिसमें घसीटी बेगम, शौकत जंग, दीवान राय दुर्लभ, मानिक चंद, फतेहचंद, राजवल्लभ, मीरजाफर (सिराजुद्दौला का सेनापति), यार लतीफ (उप सेनापति) शामिल थे।
मीरजाफर को भारत का पहला देशद्रोही कहा जाता है।
सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच तनाव के कारण
सिराजुद्दौला के गद्दी पर बैठने के बाद स्वागत और नजराना पेश नहीं किया।
अंग्रेजों ने दीवान राय दुर्लभ और शौकत जंग को कलकत्ता के किले में शरण दी। इन दोनों ने बिहार के राजस्व में घोटाले किए थे। 
अंग्रेजों ने अपनी बस्ती की किलेबंदी शुरू कर दी। सिराजुद्दौला के मना करने पर भी अंग्रेज नहीं माने।
अंग्रेजों ने कासिम बाजार की फैक्ट्री का सिराजुद्दौला के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण करने से मना कर दिया। 
इन सभी परिस्थितियों में 4 जून 1756 को कासिम बाजार पर हमला कर जीत लिया।
सिराजुद्दौला ने 16 जून 1756 को कलकत्ता के किले पर हमला कर जीत लिया, मानिक चंद को कलकत्ता का प्रशासनिक अधिकारी बनाकर कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर कर दिया। 
20 जून 1756 को काल कोठरी की घटना हुई। 18×14×10 के कमरे में 146 लोग बंद कर दिए गए अगले दिन केवल 23 ही जिंदा बचे।
हालवेल नामक अंग्रेज, जो उन 23 में शामिल था, ने इस घटना का जिक्र अपनी पुस्तक A Live Of Wonder में किया है।
अक्टूबर 1756 में सिराजुद्दौला और शौकत जंग के बीच मनिहारी का युद्ध हुआ, शौकत जंग मारा गया।

दक्षिण (मद्रास) से स्थल मार्ग से रॉबर्ट क्लाइव और जल मार्ग से वाटसन कोलकाता को बचाने के लिए आते हैं। मानिकचंद अंग्रेजों से घूस लेकर कोलकाता अंग्रेजों के हवाले कर देता है। उधर मराठों से भी सिराजुद्दौला को खतरा हो गया था। इन परिस्थितियों में सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच 9 फरवरी 1757 को अलीनगर की संधि होती है।

संधि की शर्तें

अंग्रेजों को कलकत्ता में किलेबंदी का अधिकार
कलकत्ता से अंग्रेजों को सिक्के ढालने का अधिकार
कोई दूसरी यूरोपीय शक्ति कलकत्ता में किलेबंदी नहीं कर सकती।
बंगाल बिहार उड़ीसा में अंग्रेजों को पूर्व की भांति कर मुक्त व्यापार की अनुमति
क्षतिपूर्ति के रूप में सिराजुद्दौला अंग्रेजों को 3 लाख रुपए देगा।
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शेष अगले अंक में



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