परमात्मा की खोज

*द्रढ निश्चय*


एक सूफी फकीर हसन एक गाव में आया। रात आधी हो गई थी, कहीं ठहरने को कोई जगह नहीं; अजनबी, अपरिचित आदमी है। कहां किससे मदद मांगे।
एक सराय के मालिक ने कहा कि कोई गवाह ले आओ, तब ठहरने दूंगा।
आधी रात, गवाह कहां खोजे? अनजान, अपरिचित गांव है। कोई पहचान वाला भी नहीं है। परेशान हो गया सूफी फकीर। एक झाड़ के नीचे सोने को जा रहा था कि तभी एक आदमी उसके पास से गुजरता हुआ दिखाई पड़ा। फकीर ने उस आदमी से कहा कि पूरी बस्ती सो गई है, किसी को जानता नहीं हूं। क्या आप मेरे लिए थोड़ी सहायता करेंगे कि चलकर सराय के मालिक को कह दें कि आप मुझे जानते हैं!
उस आदमी ने पास आकर हसन को देखा यह जानकर कि वह फकीर है—उसने हसन को कहा कि पहले तो मैं तुम्हें अपना परिचय दे दूं क्योंकि मैं एक चोर हूं और रात में अपने काम पर निकला हूं। एक चोर की गवाही एक साधु के काम पड़ेगी या नहीं, मैं नहीं जानता! सराय का मालिक मेरी बात माने, न माने। 
मेरी गवाही का बहुत मूल्य नहीं हो सकता। लेकिन मैं एक निवेदन करता हूं कि मेरा घर खाली है। मैं तो रातभर काम में लगा रहूंगा, तुम आकर सो सकते हो।
हसन थोड़ा चिंतित हुआ। और उसने कहा कि तुम एक चोर होकर भी मुझ पर इतना भरोसा करते हो कि अपने घर में मुझे ठहराते हो?
उस चोर ने कहा, जो बुरे से बुरा हो सकता है, वह मैं करता हूं। अब इससे बुरा और कोई क्या कर सकेगा? चोरी ही करोगे न ज्यादा से ज्यादा! यह अपना काम है। तुम घर आकर रह सकते हो।
सराय में जगह नहीं मिली। सराय अच्छे लोगों ने बनाई थी। एक चोर ने जगह दी! और उसने कहा, अब और बुरा क्या हो सकता है! लेकिन फिर भी हसन डरा कि चोर के घर में रुकना या नहीं रुकना! या झाड के नीचे ही सो जाना बेहतर है!
बाद में हसन ने कहा कि उस दिन मुझे पता चला कि मेरा साधु उस चोर से कमजोर था। साधु डरा कि चोर के घर रुकूं या न रुकूं! और चोर न डरा कि इस अजनबी आदमी को घर में ठहराऊं या न ठहराऊं! चोर को यह भी भय न लगा कि यह साधु है, अपना दुश्मन है, अपने को बदल डालेगा! साधु को यह भय लगा कि चोर के साथ रहने से कहीं मेरी साधुता नष्ट न हो जाए!
हसन ने बाद में कहा कि उस दिन मुझे पता चला कि मेरे साधु का जो निश्चय था, वह चोर के निश्चय से कमजोर था। वह ज्यादा दृढ़ निश्चयी था।
हसन गया, चोर के घर रात रुका। कोई सुबह, भोर होने के पहले चोर आया, हसन ने दरवाजा खोला। हसन ने पूछा, कुछ मिला? चोर ने हंसते हुए कहा, आज तो नहीं मिला, लेकिन फिर कोशिश करेंगे। उदास नहीं था, परेशान नहीं था, चिंतित नहीं था; आकर मजे से सो गया! दूसरी रात भी गया। और हसन एक महीने उसके घर में रहा, और रोज ऐसा हुआ कि रोज वह खाली हाथ लौटता और हसन उससे पूछता कि कुछ मिला? और वह कहता, आज तो नहीं, लेकिन फिर कोशिश करेंगे!

फिर बरसों बाद हसन को आत्मज्ञान हुआ। दूर उस चोर का कोई पता भी न था कहां होगा। जिस दिन हसन को आत्मज्ञान हुआ, उसने पहला धन्यवाद उस चोर को दिया और परमात्मा से कहा, उस चोर को धन्यवाद! क्योंकि उसके पास ही मैंने यह सीखा कि साधारण सी चोरी करने यह आदमी जाता है और खाली हाथ लौट आता है, लेकिन उदास नहीं है, थकता नहीं, निश्चय इसका टूटता नहीं। कभी ऐसा नहीं कहता कि यह धंधा बेकार है, छोड़ दें, कुछ हाथ नहीं आता!
और जब मैं परमात्मा को खोजने निकला, उस परम संपदा को खोजने निकला, तो न मालूम कितनी बार ऐसा लगता था कि यह सब बेकार है, कुछ मिलता नहीं। न कोई परमात्मा दिखाई पड़ता है, न कोई आत्मा का अनुभव होता है। पता नहीं इस सब बकवास में मैं पड़ गया हूं। और जब भी मुझे ऐसा लगता था, तभी मुझे उस चोर का खयाल आता था कि साधारण सी संपदा को चुराने जो गया है, उसका निश्चय भी मुझसे ज्यादा है, और मैं परम संपदा को चुराने निकला हूं, तो मेरा निश्चय इतना डांवाडोल है! तो जिस दिन उसे ज्ञान हुआ, उसने पहला धन्यवाद उस चोर को दिया और कहा कि मेरा असली गुरु वही है। हसन के शिष्यों ने उससे पूछा कि उसके असली गुरु होने का कारण? तो उसने कहा, उसका दृढ़ निश्चय!
दृढ़ निश्चय का अर्थ है कि पूरे प्राण इतने आत्मसात हैं कि चाहे हार हो, चाहे जीत; चाहे सफलता मिले, चाहे असफलता, निर्णय नहीं बदलेगा। दृढ़ निश्चय का अर्थ है, चाहे असफलता मिले, चाहे सफलता, चाहे जन्मों—जन्मों तक भटकना पड़े, निर्णय नहीं बदलेगा, खोज जारी रहेगी। सब खो जाए 
लेकिन भीतर खोजने वाला संकल्प नहीं खोएगा। वह जारी रहेगा। भले ही सब विपरीत हो जाए, सब प्रतिकूल पड़ जाए, कोई साथी मिले, न मिले, कोई संगी मिले, न मिले, कोई अनुभव की किरण मिले, न मिले, घनघोर अंधेरा हो, तब भी तलाश जारी रहेगी।


गीता दर्शन


ओशो

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